13. केशान्त संस्कार

  • हिन्दू धर्म संस्कारों में केशान्त संस्कार एकादश संस्कार है।
  • बालक का प्रथम मुंण्डन प्रायः पहले या तीसरे वर्ष में हो जाता है। यह बात पहले ही कही जा चुकी है।
  • प्रथम मुंण्डन का प्रयोजन केवल गर्भ के केशमात्र दूर करना होता है।
  • उसके बाद इस केशान्त संस्कार में भी मुंण्डन करना होता है।
  • जिससे बालक वेदारम्भ तथा क्रिया-कर्मों के लिए अधिकारी बन सके अर्थात वेद-वेदान्तों के पढ़ने तथा यज्ञादिक कार्यों में भाग ले सके। इसलिए कहा भी है कि शास्त्रोक्त विधि से भली-भाँति व्रत का आचरण करने वाला ब्रह्मचारी इस केशान्त-संस्कार में सिर के केशों को तथा श्मश्रु के बालों को कटवाता है।[1]

केशान्त संस्कार वेदारंभ के पश्चात् और समावर्तन संस्कार से पहले किया जाता है। जो विद्यार्थी विद्याध्ययन के लिये गुरुकुल अथवा गुरु के आश्रम में जाता है, वह पूरी तरह से ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करता है। विद्याध्ययन की पूर्ण अवधि तक केश नहीं कटवाता और मौजी मेखला आदि धारण करता है। केशांत संस्कार के अंतर्गत विद्याध्ययन पूर्ण हो जाने पर यह ब्रह्मचारी मौजी मेखला का परित्याग करता है और अपने बढ़े हुये केश कटवाता है। केश से तात्पर्य यहां दाढ़ी के केश से लिया जाता है। दाढ़ी का आना युवावस्था का प्रतीक भी माना जाता है। केशांत संस्कार गुरुकुल में ही संपन्न किया किया जाता है। इस संस्कार में भी सभी विधि-विधान का पालन किया जाता है। अन्य संस्कारों की ही तरह केशांत संस्कार के प्रारंभ में गणेश आदि देवों का पूजन किया जाता है। इसके पश्चात ब्रह्मचारी की दाढ़ी बनाने की क्रिया संपन्न की जाती है। दाढ़ी को श्मश्रु भी कहा जाता है, इसलिये कहीं-कहीं इस संस्कार को श्मश्रु संस्कार भी कहा गया है। इसके बारे में संस्कार दीपक में उल्लेख मिलता है- केशानाम् अन्तः समीपस्थितः श्मश्रुभाग इति व्युत्पत्त्या केशान्तशब्देन श्मश्रुणामभिधानात् श्मश्रुसंस्कार एवं केशान्तशब्देन प्रतिपाद्यते। अत एवाश्वलायनेनापि ‘श्मश्रुणीहोन्दति’। इति श्मश्रुणां संस्कार एवात्रोपदिष्टः। इस संस्कार के बारे में कहीं-कहीं पर गोदान संस्कार का नाम भी आया है। केश (बालांे) को गौ के नाम से भी जाना जाता है। गोदान संस्कार के बारे में कहा गया है- गावो लोमानि केशा दीयन्ते खंडयन्तेऽस्मिन्निति व्युत्पत्त्या गोदानं नाम ब्राह्मणादीनां षोडशादिषु वर्षेयु कर्तव्यं केशान्ताख्यं कर्मोच्यते। तात्पर्य यह है कि गौ अर्थात् लोम-केश जिसमें काट दिये जाते हैं। इस व्युत्पत्ति के अनुसार ब्राह्मण आदि वर्णों के लिये गोदान पद का यहां उल्लेख हुआ है। इन वर्णों के द्वारा सोलहवें वर्ष में करने योग्य केशान्त नामक कर्म का वाचक है। विद्वानों के अनुसार यह संस्कार केवल उत्तरायण में किया जाता है। इस संस्कार को सोलहवें वर्ष में करने का विधान बताया गया है। इस आयु से पूर्व यह संस्कार प्रायः नहीं होता है। इसके पश्चात् ब्रह्मचारी शिक्षार्थी को वापिस अपने घर जाने की आज्ञा मिल जाती है। इसके पश्चात् ही उसे विवाह संस्कार करने का अधिकार भी प्राप्त हो जाता है। इस संस्कार का प्रतीकात्मक महत्त्व ही अधिक है अर्थात् ब्रह्मचारी जब अपनी शिक्षा पूर्ण कर लेता था तो उसे एक नया स्वरूप देने के लिये उसके दाढ़ी के बाल काट दिये जाते थे। विद्वान इसका तात्पर्य इस बात से भी लेते हैं कि अब यह व्यक्ति अपने जीवन की दूसरी जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिये पूर्ण रूप से तत्पर है। जब यह व्यक्ति अपने घर लौटता है तो समावर्तन संस्कार के माध्यम से यह निश्चित कर लिया जाता था कि इस व्यक्ति की शिक्षा पूर्ण हो गई है, इसलिये इसे विवाह करके गृहस्थ जीवन जीने की आज्ञा दी जाती है। वर्तमान में इस संस्कार का विशेष महत्त्व नहीं देखा जाता है। संस्कारों के संदर्भ में इसका उल्लेख करना आवश्यक था, इसलिये यहां इस संस्कार का संक्षिप्त परिचय ही दिया गया है।

No comments:

Post a Comment